हाथों को जोड़े बैठें है बाबूजी ,
राजाजी के दरबार मे ...
करने शिकायत छोटे की जिसने ,
है कलह मचाई घरबार में ...
देखो तुम हो बड़े यहाँ पे,
राजाजी समझाते हैं।
ऐसे छोटी बातों पे क्या,
रिश्ते तोड़े जाते हैं?
अम्मा की बातों को बाबूजी ,
अकसर अनसुनी करजाते हैं।
तुम हो जनता सी भोली बहुत,
ये कह के बहलाते हैं।
राजाजी को हम हैं प्रिय बहुत ,
इसलिए हमको ही समझाएं गे।
वादा किया है मुझे से
पंचायत मैं ,परमानेंट सीट दिलाएं गे।
पर राजाजी को है परेशानी क्या ,
अमा झीक कर रह जाती है।
"अपनी बारी मैं उनको ,
क्यों गीता- ज्ञान याद नहीं आती है?
जब छोटे का लड़का उनकी ,
लड़की को ले भागा था।
छुप बैठा था जाकर ट्विन टावर में,
तब कैसा प्रलय जागा था?
राजाजी ने अन्न जल त्याग
भीष्म प्रतिज्ञा ले डाली थी।
जवाला सी बरसी थी चहूं और ,
नगरी मरुस्थल बना डाली थी।
दो दिन मैं ढूंढ निकाले ,
छोटे के नालायक लड़के थे।
क्षण मैं अलग कर डाले
सर से उनके धड़ थे।
पर अब जब बात, हमारी
मरियादा की दावँ पर आयी है।
तो उनको प्रेम शांति भाई चारे की
बातें याद सब आयी हैं। .
चुप्पी के दिन बीतगये ,
कहतें हैं दिन अछे आये हैं।
तुमको हक़ दिलवाने को ,
मुंषी मोदी गाँव में आये हैं।
श्री राम को भी तीन दिवस तक ,
जब सागर ने न पूछा था,
जब छोड़ प्रेम प्यार वो पौरुष पर आये ,
तब उसको दास बनने का सूझा था। "
अम्मा की बातों को बाबूजी ,
अकसर अनसुनी करजाते हैं।
तुम हो जनता सी भोली बहुत,
ये कह के बहलाते हैं।
ना जाने किस डर से, बाबूजी घबराते हैं,
राजाजी के आधे दरबारी , उनके घर से ही जाते हैं।
राजाजी के दरबार मे ...
करने शिकायत छोटे की जिसने ,
है कलह मचाई घरबार में ...
देखो तुम हो बड़े यहाँ पे,
राजाजी समझाते हैं।
ऐसे छोटी बातों पे क्या,
रिश्ते तोड़े जाते हैं?
अम्मा की बातों को बाबूजी ,
अकसर अनसुनी करजाते हैं।
तुम हो जनता सी भोली बहुत,
ये कह के बहलाते हैं।
राजाजी को हम हैं प्रिय बहुत ,
इसलिए हमको ही समझाएं गे।
वादा किया है मुझे से
पंचायत मैं ,परमानेंट सीट दिलाएं गे।
पर राजाजी को है परेशानी क्या ,
अमा झीक कर रह जाती है।
"अपनी बारी मैं उनको ,
क्यों गीता- ज्ञान याद नहीं आती है?
जब छोटे का लड़का उनकी ,
लड़की को ले भागा था।
छुप बैठा था जाकर ट्विन टावर में,
तब कैसा प्रलय जागा था?
राजाजी ने अन्न जल त्याग
भीष्म प्रतिज्ञा ले डाली थी।
जवाला सी बरसी थी चहूं और ,
नगरी मरुस्थल बना डाली थी।
दो दिन मैं ढूंढ निकाले ,
छोटे के नालायक लड़के थे।
क्षण मैं अलग कर डाले
सर से उनके धड़ थे।
पर अब जब बात, हमारी
मरियादा की दावँ पर आयी है।
तो उनको प्रेम शांति भाई चारे की
बातें याद सब आयी हैं। .
चुप्पी के दिन बीतगये ,
कहतें हैं दिन अछे आये हैं।
तुमको हक़ दिलवाने को ,
मुंषी मोदी गाँव में आये हैं।
श्री राम को भी तीन दिवस तक ,
जब सागर ने न पूछा था,
जब छोड़ प्रेम प्यार वो पौरुष पर आये ,
तब उसको दास बनने का सूझा था। "
अम्मा की बातों को बाबूजी ,
अकसर अनसुनी करजाते हैं।
तुम हो जनता सी भोली बहुत,
ये कह के बहलाते हैं।
ना जाने किस डर से, बाबूजी घबराते हैं,
राजाजी के आधे दरबारी , उनके घर से ही जाते हैं।
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